Menu
blogid : 9515 postid : 99

“सीसा ” और हमारी सेहत

मेरे विचार आपके सामने
मेरे विचार आपके सामने
  • 32 Posts
  • 800 Comments


kitaaaaaaaaaaanu


‘सीसा ‘ और हमारी सेहत

===============

पर्यावरण के लिए घातक सीसे से निजात दिलाने की प्रक्रिया के सिलसिले में सीसीएसयू
(चौधरी चरण सिंह यूनिवरसिटि मेरठ )ने नया इतिहास रचा है । रसायन विभाग ने प्लास्टिक के उत्पादों मे इस्तेमाल होने वाले रसायनो के विकल्प के रूप मे एक आर्गेनिक फार्मूले का कॉम्पाउंड तैयार किया है और इस फार्मूले को 20 साल के लिए पेटेंट कर दिया गया है ।विशेषज्ञों का मानना है कि इससे जीवन पर कसते प्लास्टिक के फंदे से काफी हद तक राहत मिलेगी केन्द्रीय विज्ञान प्रोद्योगिकी मंत्रालय कि बनारस स्थित एजेंसी टेक्नोलोजी फेसिल्टेशन सेंटर ने उद्योगों मे इस तकनीक को लागू करने के लिए सीसीएसयू से संपर्क किया है ।
पोलीमिनाइल क्लोराइड यानि पीवीएस को हीट करने पर एचसीएल नामक जहरीली गैस कम्पाउन्ड को ब्रेक कर देती है जिससे बचाने के लिए सीसे का प्रयोग करना पड़ता है ।विवि के रसायन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ0 आरके सोनी ने तीन वर्ष के शौध के बाद ओर्गेनिक स्टेबलाइजर का निर्माण किया ।जिसे पीवीसी मे लगाकर 160 डिग्री ताप तक टूटने से बचाया जा सकता है । बाज़ार में अब यह सीसे का सस्ता एंव टिकाऊ विकल्प बनकर उभरा है ।
यह एक सुरक्षित और सस्ता विकल्प है ।
एनसीआर की हवा में 0.55 से 1.25 माइक्रोग्राम प्रति घन सेंटीमीटर सीसे की उपस्थिति पाई गई है । खाद्य पदार्थों मे दिल्ली ,मेरठ ,गाज़ियाबाद मे 18 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम की मौजूदगी मिली । हर कल कारखानो का दूषित पानी किसी नदी या तालाब में जाकर गिरता है। जिस कारण इन नदी ,नाले, तालाबों का पानी तो दूषित हुआ ही है साथ में इनके किनारे उगाई जाने वाली बे मौसमी सब्जियाँ बहुत ही विषैली होती हैं । जो फायदे की जगह नुकसान ज़्यादा करती हैं हिंडन नदी हो या यमुना इनमे किनारे से अंदर दूर तक उगाई जाने वाले फल व सब्जियाँ पूरी दिल्ली तथा आस-पास के इलाको में बेची जाती हैं ।जिनमे सीसे की मात्रा अत्यधिक पाई जाती है जो स्वास्थ्य
पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं । जिससे मानव शरीर में प्रति रोधक क्षमता घट जाती है और वो कई रोगो का शिकार हो जाता है जैसे –वृक्क व लीवर के कैंसर ,हीमोग्लोनिन लेवल डिस्टर्ब ,तंत्रिका तंत्र का नाकाम होना इत्यादि ।इसी प्रकारउद्योगो के निकट उगाई जाने वाली सब्जियों में भी सीसे की खतरनाक मात्रा पाई गई है । रक्त में 70 माइक्रोग्राम प्रति मिली तक बढ्ने से जहरीले प्रभाव साफ नज़र आने लगे हैं । इसी के साथ एक समस्या और भी जुड़ी हुई है ,है तो वो टोपिक से अलग परंतु मैं ये कहना भी ज़रूरी समझती हूँ । इन्ही नदी- तालाबो के किनारे उगाये जाने वाले फल या सब्जियों को इन्ही के दूषित पानी में धोया जाता है , जिस के कारण कई खतरनाक विषाणु इन उत्पादकों से चिपक जाते हैं और वो इन फल व सब्जियों को  साफ पानी मे धोने के बावजूद इनसे चिपके रहते हैं और मानव शरीर मे प्रवेश कर जाते हैं । कई तो 2 घंटे तक सब्जियों के उबालने के बावजूद ज़िंदा रहते हैं। और भोजन के साथ शरीर में पहुँच जाते हैं ।

जहाँ हमारे वैज्ञानिक अपने शौधों से हर बीमारी हर समस्या से छुटकारा पाने के लिए नए-नए शौध करके मनुष्य जीवन को फिर से सुगम बनाने के लिए प्रयासरत हैं वहीं हम जन मानस का भी ये नैतिक कर्तव्य बनता है की हम लोगो को जागरूक करें कि वो ऐसी जगहों से उगाये गए फल व सब्जियों का बहिष्कार करें । जो मानव शरीर के लिए बेहद खतरनाक हैं । …. पूनम मनु

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply