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अस्मत

मेरे विचार आपके सामने
मेरे विचार आपके सामने
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अस्मत

वो खड़ी गली के
नुक्कड़ पर चिल्ला रही है
उसकी अस्मत को फिर
रौंदने की कोशिश
की जा रही है॥

जिस ओर से भी
रोशनी दिखती है उसे
वो बदहवास सी उधर ही
दौड़ी जा रही है॥

ये गली के गुंडों की जवानी
क्यूँ घटती ही नहीं ?
हर बार ही भीड़ सी
बढ़ी जा रही है॥

किसकी बहिन है वो
न जाने किसका जिगर है
जिसकी चीख मेरे
दिल को दहला रही है॥

मूक हैं उस गली के लोग
और न जाने क्यूँ
मूक ही रहेंगे
जहां पर एक नारी
लूटी जा रही है ॥

मैं निकल कर घर से
उसको बचा लूँ आज
मेरे अंदर की इंसानियत
अब गिड़गिड़ा रही है॥

…पूनम राणा  ‘मनु’



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