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“तुम स्त्री हो ”

मेरे विचार आपके सामने
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“तुम स्त्री हो ”
तुम स्त्री हो, नदी सी बहो
संचय किसी भी चीज़ का
न अपने लिए करो
तुम स्त्री हो , नदी सी बहो
… बहो आँखों से बहो
बहो आत्मा से बहो
सुप्त पड़ी किसी भी कामना को
तुम ना जगाना
अपने लिए कोई भी
दुआ ना मनाना
मांगना बस इतना ही तुम
कि सुहागन मरो
इतना ही कुछ करना जो
बस औलाद के लिए हो
तुम स्त्री हो ,नदी सी बहो
पीड़ा तुम्हारे मन की
किसी से न कहो
तन की पीड़ा किसी
काम में बाधा न बने
तब तक हँसती ,दिखती रहो
तब तक न मरो
तुम स्त्री हो ,नदी सी बहो
जो किसी पुरुष पर लांछन
तुमने लगाया
निर्लज्ज सी बांतें हैं
तुम्हारे लिए
तुम पर कोई कितना ही दोष मढ़े
चुप सहो ,धीर धरो कुछ न कहो
तुम स्त्री हो ,नदी सी बहो
निश्छल प्रेम की अनुभूति
उम्रभर तुम्हारे वास्ते नहीं
तुम्हारे मन के आखर पढ़ने के
आते किसी को रास्ते नहीं
प्रेम मूर्ति बन बस तुम रहो
तुम स्त्री हो,नदी सी बहो
एक-एक पल जिंदगी
का तू जोड़ती जा
बचपन से यौवन तक
पिता या भाई किसी को सौंप देना
यौवन से मृत्यु तक
बस पति को तू थमा
बन जाये जब मन गठरी
तो खोलना नहीं
चुप -चाप से जी ले
कुछ बोलना नहीं
जन्म से मृत्यु तक
बस दूसरों की रहो
तुम स्त्री हो ,नदी सी बहो
अपने मर्यादित किनारों में
बंधकर रहो
भागीरथी की तरह तो शंभू
तुम्हें मिलेंगे नहीं
काली भी बनने से पहले
सोचना तुम
तुम्हारे ही लहू के भी
रंग इसमें दिखेंगे नहीं
क्या पता फिर किसी अग्नि में
जीवित ही जलो
चुप रहो सब सहो
कुछ न कहो
तुम स्त्री हो,बस नदी सी बहो……………………… पूनम राणा “मनु”

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